दोस्तों सीधा मुद्दे की बात करते है और जानते है की फैट यानि वसा हमारे शरीर के मोटापे पर किस तरह असर डालता है। अगर सीधा सीधा कहा जाए तो मोटापा ही फैट है और फैट ही मोटापा है। बिना फैट कम किये आप वेट कम नहीं कर सकते । वेट कम करने के लिए पहले फैट को समझना पड़ेगा। हमें समझना होगा की, क्या फैट सच में शरीर के लिए नुकसान दायक है या यह शरीर की लिए जरुरी है। अगर नुकसान दायक है तो हम इसे लेते ही क्यों है । अगर इसके फायदे है तो इसे घटाने की क्या जरुरत है। साथ ही हमें समझना होगा फैट शरीर के वजन को कम या ज्यादा करने में किस प्रकार अपनी भूमिका अदा करता है और फैट का असली काम क्या है ।
फैट को यहाँ पर दो हिस्सों में बांटा गया है। पहला है वो फैट जो हमारे शरीर में पाया जाता है, जिसे Body Fat के नाम से जाना जाता है,और दूसरा फैट जिसे हम खाते है यानि Dietary Fat । इन दोनों पर विस्तार से चर्चा करके जानेगे की कैसे फैट हमारे शरीर के लिए काम करता है, कहाँ पाया जाता है, क्यूँ जरूरी है । कैसे फैट को हम अपने अनुसार काम करा सकते है । एक्सेस फैट के नकारात्मक प्रभाव को शरीर पर कम कर सकते है। तो आइये करते है इसकी शुरुआत बॉडी फैट से ।
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बॉडी फैट क्या है? What is body fat ?
वसा यानि फैट हमारे नाजुक अंगो को कुशन (गद्दी) देकर बाहरी चोटों से बचाता है। साथ ही शरीर का तापमान को भी मैनेज करने में हेल्प करता है, शरीर में मौजूद सेल्स कोशिकाओं को बढ़ाता है और, सबसे जरुरी शरीर को जीवन जीने और विभिन्न कार्यों के लिए एनर्जी की जरुरत होती है क्योंकि फैट में प्रति ग्राम कैलोरी की मात्रा सबसे अधिक होती है जिससे सबसे ज्यादा एनर्जी मिलती है । सही प्रकार के फैट हमें टाइप 2 डाइबिटीज, हृदय के रोग, और कुछ खास तरह के कैंसर को कम करने में मदद करता है। कुछ विटामिन भी बिना फैट के शरीर में अवशोषित नहीं हो पाते है । साथ ही शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए भी फैट की जरुरत होती है। अत्यधिक और गलत फैट शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक है और कई मुख्य रोगो का कारण है। कोलेस्ट्रॉल भी इसी का एक उदाहरण है ।
बॉडी फैट कहाँ पाया जाता है। Location of body fat ?
शरीर में मुख्य रूप से बॉडी फैट को साइंटिस्ट ने दो केटेगरी में डिवाइड किया है।
- सबक्यूटेनियस ( Subcutaneous ) फैट।
- विसरल ( Visceral ) फैट।
Subcutaneous / सबक्यूटेनियस
Subcutaneous / सबक्यूटेनियस (चमड़ी के निचे का फैट) – सबक्यूटेनियस फैट शरीर में स्किन या चमड़ी के ठीक निचे और मसल्स के ठीक ऊपर पाया जाता है। आप इस चर्बी को दबाकर या पकड़ कर महसूस कर सकते है। हम सभी वेट लॉस के लिए इसी फैट की बात करते है। ये फैट शरीर में सबसे ज्यादा पाया जाता है और मुख्य रूप से यह परत सबसे ज्यादा कमर, पीठ, कूल्हों, नितम्बो और जांघो के ऊपर पायी जाती है। इसकी अत्यधिक मात्रा बीमारी के खतरे को बढ़ा देती है। यह फैट शरीर की हड्डियों और जोड़ो को सुरक्षा देता है।
Visceral / विसरल फैट
Visceral / विसरल फैट (आंत का फैट ) – इस प्रकार का फैट हमारे शरीर के अंदर की तरफ पाया जाता है। मुख्य रूप से पेट के आसपास होता है जो की ऊपर से दिखाई देता है जिसे अकसर पेट की चर्बी (abdomen fat) या पेट का मोटापा (belly fat) भी कहते है। यह फैट डाइजेस्टिव सिस्टम यानि पाचन तंत्र के चारो तरफ लिपटा होता है। और ज्यादा होने पर यह हृदय के आस पास भी पहुंच जाता है। विससेरल फैट की अधिकता बहुत ही खतरनाक है और इसकी वजह से हृदय रोग, मधुमेह और कुछ हद तक कैंसर का खतरा भी बना रहता है। यह साइटोकिन्स नामके सूजन वाले रसायनों को छोड़ता है जो की इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ाता हैं। इसलिए इसे सबसे खतरनाक फैट माना गया है। विसेरल फैट का सीधा सम्बन्ध आपकी डाइट से है । आपके द्वारा ली गयी कैलोरी इस पर सीधा असर डालती है।
बॉडी फैट के प्रकार (Types of body fat)
हमारे शरीर में पाया जाने वाला फैट कई हिस्सों में बटा है और इन फैट के अलग अलग नाम और काम है जो की नीचे विस्तार से बताए गए है । अपने शरीर के बॉडी फट को नापने के कई तरीके है जो की आप इस लिंक पर जा कर जान सकते है ।
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1. सफेद फैट / व्हाइट फैट (White fat)
सफेद या व्हाइट फैट बड़ी और सफेद कोशिकाओं से बना होता है। यह फैट मुख्य रूप से पेट पर और साथ ही हाथ, हिप्स और जांघों में चमड़ी के नीचे और आसपास जमा होता है। यह फैट सेल्स शरीर में एनर्जी को स्टोर रखता है, इस एनर्जी को शरीर जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल करता है। सफेद फैट 50 से ज्यादा हार्मोन्स, एंजाइम और ग्रो करने वाले कामो पर असर डालता है। इसमें मौजूद लेप्टिन और एडपोनेक्टिन, लिवर और मसल को इन्सुलिन से अच्छी तरह से प्रतिक्रिया करनी में मदद करता है। लेकिन जब सफ़ेद फैट ज्यादा मात्रा में शरीर में इकठा हो जाता है तो शरीर के हार्मोन्स इन्सुलिन को संभाल नहीं पाते है और इसके नकारात्मक परिणाम भी आने लगते है।
सफेद फैट गुड हेल्थ के लिए बहुत ही जरुरी माना जाता है और, वहीं इसका अधिक मात्रा में शरीर में होने पर यह शरीर के लिए खतरनाक भी होता है। साइंटिस्ट मानते है की जो लोग एथलेटिक नहीं होते है उन लोगो में फैट का सही अनुपात 14 से लेकर 24 प्रतिशत तक होना चाहिए।
2. ब्राउन फैट (Brown fat)
ब्राउन फैट ज्यादातर बच्चों में ही पाया जाता है जो की सर्दियों में उनके शरीर को गर्म बनाये रखता है। ब्राउन फैट की मात्रा बड़े लोगो में बच्चो की तुलना में बिलकुल कम होता है। ब्राउन फैट की सबसे ख़ास बात यह है की इस पर आपके खाने की कैलोरी का कोई असर नहीं होता है और यह कैलोरी के कम या ज्यादा होने से बढ़ता या घटता नहीं है। आपको जानकार आश्चर्य होगा की मोटे लोगो में यह फैट कम पाया जाता है बल्कि पतले लोगो में ये फैट मोटे लोगो की तुलना से ज्यादा पाया जाता है। ज्यादातर मात्रा में ब्राउन फैट गर्दन और कंधे पर होता है। ब्राउन फैट बॉडी को गर्म रखने के लिए फैटी एसिड को बर्न करता रहता है।
3. बेज / ब्राइट फैट (Beige / Brown fat)
बेज या ब्राइट फैट के बारे में अभी तक पूरी तरह से जानकारी एकत्रित नहीं हो सकी है। साइंटिस्ट का मानना है की ये रिसर्च करने के लिए नया एरिया है। यह फैट सेल्स ब्राउन और सफेद फैट सेल्स के बीच में काम करती हैं। ब्राउन फैट की तरह, बेज कोशिकाएं भी फैट को स्टोर करने के बजाय उसे जलाने में मदद कर सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि जब आप तनावग्रस्त होते हैं, या जब आप एक्सरसाइज करते हैं तो कुछ हार्मोन और एंजाइम रिलीज होते हैं। यह हार्मोन सफेद फैट को बेज फैट में बदलने में मदद करते हैं। यह संभवतः मोटापे को रोकने और हेल्दी बॉडी में फैट के लेवल को बैलेंस करते हैं। पर ये सभी कल्पना ही है अभी तक इसका साइंटिफिक प्रमाण नहीं मिला है।
4. पिंक फैट (Pink fat)
यह फैट ओरतों में प्रेग्नेंसी के दौरान white fat से कन्वर्ट हो कर बनता है। इससे माँ के अंदर बच्चे के लिए दुग्ध बनाने के लिए जरुरी माना जाता है। इसकी वजह से माँ बच्चे को दुग्ध पिला पाती है।
इन चारो के अलावा एक फैट टाइप और होता है जिसे असेंशियल फैट के नाम से जाना जाता है यह फैट कुछ अलग या नया नहीं बल्कि उपरोक्त सभी फैट का ही एक रूप है।
एसेंसिअल या आवश्यक फैट (Essential fat)
एसेंसिअल या आवश्यक फैट वह फैट होता है जो आपकी बॉडी और हेल्दी लाइफ के लिए काफी जरूरी होता है। यह फैट बॉडी के अंदर सभी प्रमुख ऑर्गन्स में पाया जाता है, जैसे की दिमाग (Brain), बोन मेरो (Bone marrow), नर्व्स सिस्टम (Nerves system) और मेम्ब्रेन आदि में ये एसेंसिअल फैट काफी मददगार होता है। ये फैट हार्मोन्स को कण्ट्रोल करते है, बॉडी के टेम्प्रेचर को रेगुलेट करते है, कुछ मिनरल और विटामिन बिना फैट के शरीर में अवशोषित नहीं हो सकते इसलिए इन मिनरल और विटामिन को शरीर के पहुंचाने में मदद करते है।
अब आप बॉडी फैट के बारे मे अच्छी प्रकार से जान चुके है की इसकी क्या जरुरत है और शरीर में ये कहाँ पाया जाता है और कैसे शरीर के लिए उपयोगी है । साथ ही साथ किस प्रकार काम करता है। अब बात करते हैउस फैट की जो हमारे खाने पिने में पाया जाता है जिसे डाइट्री फैट कहते है । ये फैट चार प्रकार का होता है।
खाने का फैट | Dietary Fat
- सैचुरेटेड फैट | Saturated Fat
- ट्रांस फैट | Trans Fat
- मोनोअनसचुरेटेड फैट | Monounsaturated Fat
- पॉलीअनसेचुरेटेड फैट | Polyunsaturated Fat
इन सबकी जानकारी प्राप्त करना बहुत ही आसान है । बाजार मे पाये जाने वाले सभी खाद्य पदार्थ के पैकेट पर इनकी मात्रा साफ साफ लिखी होती है । इनकी कितनी मात्रा रोजाना के खाने मे लेना सुरक्षित है और कौनसे फैट को रोजाना के आहार मे जरूर शामिल करना चाहिए ।
सैचुरेटेड फैट | Saturated Fat
सेचुरेटेड फैट की गिनती खराब फैट में की जाती है। इस फैट की अधिकता से कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है जो की शरीर के लिए बहुत ही घातक है इसकी वजह से आर्टरीज़ में ब्लॉकेज होने से और इससे ह्रदय रोग होने का खतरा है जो की बहुत ही जानलेवा है। कोलेस्ट्रॉल के बारे में आगे इसी पेज पर विस्तार से बताया गया है। सेचुरेटेड फैट उन फैट्स में से एक है जिसे हमारे खाने में बहुत ही सिमित मात्रा में लेना चाहिए। नुट्रिशन एक्सपर्ट मानते है की सैचुरेटेड फैट हमारे खाने में टोटल कैलोरीज का 10 प्रतिशत से कम होना चाहिए यानि आपके नुट्रिशन एक्सपर्ट द्वारा आपको रोजाना जितनी कलौरी लेने के लिए आपको बताया हो उनमें सैचुरेटेड फैट से मिलने वाली टोटल कलौरी 10 प्रतिशत से कम होनी चाहिए। यह उन फैट में से एक है जिन्हें हमारे आहार में सीमित मात्रा में ही लिया जाना चाहिए।
इस फैट को आसानी से पहचाना जा सकता है यह फैट नार्मल कमरे के तापमान पर जम जाता है यानि ठोस हो जाता है। जैसे नारियल या पाम का तेल। इसके अलावा यह यह फैट जानवरो में भी पाया जाता है जैसी की जानवरो की चर्बी, सूअर में, हाई फैट वाले मीट, हाई फैट वाले डेरी प्रोडक्ट, बट्टर, क्रीम आदि आदि।
इसके मुख्य स्त्रोत निम्न है।
- बटर
- पाम तेल
- घी
- पेस्ट्री, आइसक्रीम, सॉस,
- चीज़
- क्रीम
- मेयोनीज
- कच्चा नारियल
ट्रांस फैट | Trans Fat
ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट दोनों एक ही तरह के फैट है । ट्रांस फैट वेजटेबल आयल को हाइड्रोजन गैस के साथ गर्म करके निकाला जाता है। ट्रांस फैट कुछ हद तक मीट और डेरी प्रोडक्ट में भी पाया जाता है। ट्रांस फैटस भी सैचुरेटेड फैट की तरह ही नार्मल रूम टेम्प्रेचर पर जम जाता है। ये शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक है। ये आर्टरीज़ को ब्लॉक करके हार्ट अटैक का खतरा बढ़ा देता है। ट्रांस फैट का ज्यादा इस्तेमाल वनस्पति घी, बाहर रोड साइड ठेलो और रेस्टोरेंट में मिलने वाले तले और बेक किये खाने में जैसे की बिस्कुट, कुकीज़, पाई आदी मे पाया जाता है । WHO के अनुसार ट्रांस फैट से मिलने वाली टोटल कैलोरी हमारे द्वारा ली जाने वाली टोटल कैलोरी का सिर्फ 1 परसेंट से ज्यादा नहीं होना चाहिए, यानि 1000 कैलोरीज पर ट्रांस फैट 1.1 ग्राम से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
ये ट्रांस फैट ज्यादातर निम्न प्रकार के खाने में पाया जाता है।
- चिप्स
- नमकीन
- कूकीज
- बिस्किट
- डीप फ़्राईड खाने जैसे – समोसा, पुड़ि, फ्रेंच फ्राइज
- बर्गर, पिज़्ज़ा, हॉट डॉग, हैम्बर्गर,
मोनोअनसचुरेटेड फैट | Monounsaturated Fat
मोनोअनसैचुरेटेड फैट को हेल्थ के लिए बहुत ही लाभकारी माना जाता है। इसे MuFa के नाम से भी जाना जाता है। इस फैट का संतुलित आहार सीधा सीधा हमारे ह्रदय पर सुरक्षित प्रभाव डालता है। ये मोनोअनसेचुरेटेड फैट शरीर में LDL यानि खराब कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करता है, जिससे ह्रदय में होने वाली गंभीर बीमारी या हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है । साथ ही इससे शरीर की कोशिकाओं को विकसित करने और उन्हें हेल्थी अवस्था में बनाये रखने में मदद मिलती है। मोनोअनसैचुरेटेड फैट कमरे के तापमान पर तरल अवस्था में रहता है पर ठंडी जगह पर रखने से जम जाता है और ठोस अवस्था में चला जाता है। मोनोअनसैचुरेटेड वसा में विटामिन इ भी भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं। ये विटामिन इ शरीर में एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है
इसके मुख्य स्त्रोत निम्न है।
- एवोकाडो
- कैनोला
- तिल
- सफ्लोवर
- जैतून और जैतून का तेल
- मूंगफली, मूंगफली तेल या पीनट बटर
- कुसुम का तेल
- ड्राई फ्रूट जैसे काजू, बादाम, मेवे आदि
पॉलीअनसेचुरेटेड फैट | Polyunsaturated Fat
पॉलीअनसेचुरेटेड फैट भी शरीर के लिए बेहद जरुरी और अहम फैट है। यह फैट भी कमरे के तापमान पर तरल अवस्था में रहता है और ठंडा करने पर जम जाता है। पॉलीअनसेचुरेटेड फैट खून के बेकार कोलेस्ट्रॉल को काम करने में सहायता करता है जो की ह्रिदय आवर उससे जुडी बीमारियों को काम करता है और हार्ट अटैक के खतरे को भी कम करता है। इसके नुट्रिशन से बॉडी के सेल बनते और रिपेयर होते है। इसमें विटामिन इ भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो की शरीर के लिए जरुरी तत्व है। इससे शरीर के लिए जरुरी ओमेगा 3 और ओमेगा 6 भी मिलता है जो की शरीर में उत्पन्न नहीं हो सकता है और इसकी कमी को पूरा करने के लिए बाहर से आहार के रूप में लेना पड़ता है।
इसके मुख्य स्त्रोत निम्न है
- सोयाबीन
- जई
- केनोला
- अलसी
- सूरजमुखी
- कुछ तेलीय मछली
- अखरोट, फ्लैक्ससीड, सूरजमुखी बीज
दोस्तो अभी आप हर तरह के फैट के बारे मे जान चुके है और साथ ही आपको फैट के बारे मे सभी स्त्रोत, फायदा, नुकसान, और फैट का काम भी पता चल चुका है । अभी जरूरी है की आप बुरी चर्बी से दूरी बनाए और अच्छी चर्बी को सीमित मात्र मे ग्रहण करे । इससे आप मोटापे से बचेंगे और साथ ही हृदय एवं अन्य बीमारियों से भी बचे रहेंगे ।
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